बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
उत्तर -
(Importance of Moral Development in Children's Life)
जीवन में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन, दौलत, यश - नाम सुख व आनंद की प्राप्ति में नैतिकता का असीम योगदान है। नैतिक गुणों से विभूषित व्यक्ति के चरणों में धन-दौलत, यश-नाम स्वयं ही लोटने लगता है। यहाँ तक कि स्वर्ग से उतरकर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश उसकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु इस धरा पर उतर आते हैं, तभी तो कहा गया है-
"खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा आकर तुमसे पूछे, बता तेरी रजा क्या है"
अतः स्पष्ट है कि नैतिकता के विकास से बालकों के आचरण एवं व्यवहार में शुद्धता आती है जिससे बालक का सुन्दर ढंग से व्यक्तित्व विकास होता है। बालकों के जीवन में नैतिकता का क्या - क्या महत्व है, इसे निम्न बिन्दुओं से समझाने का प्रयास किया गया है-
(1) चरित्र निर्माण में सहायक (Assist in Character Formation ) - नैतिक मूल्यों से बालकों के सुन्दर चरित्र का निर्माण होता है। जैसे - ईमानदारी, आज्ञापालन, राष्ट्रभक्ति, सत्यवादिता, सहिष्णुता, दया, करूणा, क्षमाशीलता, त्याग आदि मानवीय गुणों का विकास। ये गुण ही बालक में सुन्दर चरित्र का निर्माण करते हैं। इन गुणों से सुसज्जित बालक परोपकारी और दयालु बनता है। "गुरूनानक" में ये सभी गुण बचपन से ही मौजूद थे जो उन्हें संत / गुरू की श्रेणी में लाकर खड़ा किया। इसी प्रकार गौतम बुद्ध में परोपकारिता, त्याग एवं दयालुता की भावना थी जिसके कारण वे घर-परिवार छोड़कर संसार को एक नई दिशा देने, एक नई राह दिखाने के लिए 'बुद्ध' (Budha) बन गये। अतः नैतिकता चरित्र निर्माण में अमूल्य भूमिका निभाता है।
(2) जागरुकता के विकास में (In the Development of Awareness) - नैतिकता बालकों में जागरुकता लाती है। नैतिकता का विकास हो जाने पर, बालक समाज विरोधी कार्यों को करने से डरता है । वह दुराचार के बारे में कल्पना में भी नहीं सोच पाता है। अब वह भली-भाँति समझने लगता है कि अनुचित एवं गलत कार्यों से उसे व उसके माता-पिता एवं परिवार को बदनामी एवं अपयश ही मिलेगा। अतः बालक जीवन में उच्च आदर्शों एवं मूल्यों को अपनाता है। जागरूकता उत्पन्न हो जाने पर बालक किसी भी प्रकार के प्रलोभन का शिकार नहीं बनता है और जीवन पर्यन्त वह नैतिक आचरण ही करता है।
(3) व्यक्तित्व के विकास में सहायक (Helpful in Personality Development ) - व्यक्तित्व के विकास में नैतिकता का असीम योगदान है। नैतिक गुण व्यक्तित्व के विभिन्न शीलगुणों का निर्धारण करते हैं, जैसे- सत्यता, ईमानदारी, सहनशीलता क्षमाशीलता, दया, करुणा, कर्त्तव्यनिष्ठा, आज्ञापालन आदि विभिन्न नैतिक मूल्य चरित्र के ही अभिन्न भाग हैं और व्यक्तित्व का प्रमुख अंग । इन सद्गुणों के पालन से सुन्दर चरित्र के साथ ही बहुमुखी व्यक्तित्व का निर्माण होता है। नैतिक गुणों से परिपूरित व्यक्ति को समाज में श्रेष्ठ और ऊँचा स्थान मिलता है। फलत: समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है और वह बहुमुखी व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति बनता है।
(4) सामाजीकरण में सहायक (Helpful in Socialization) - बालकों के ‘सामाजीकरण’ (Socialization) में नैतिकता का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे कदापि नकारा नहीं जा सकता। जब बालक अपने जीवन में नैतिक आचरणों को अपनाता है, सत्य बोलता है। कर्त्तव्यनिष्ठ होकर कार्य करता है। दूसरों की मदद करता है । परोपकारी, उदार व दयालु बनता है तो समाज के लोग उसे पसंद करने लगते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं। उसे सामाजिक मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिलती है। इससे बालक का सामाजिक दायरा बढ़ता है। अतः स्पष्ट है कि नैतिकता बालक के सामाजीकरण में सहयोग देता है।
(5) सुरक्षा की भावना के विकास में सहायक (Helpfull in The Development of Feeling of Security ) - नैतिकता से बालकों में सुरक्षा की भावना का विकास होता है। वे बालक जो अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को अपनाते हैं, उनमें सुरक्षा की भावना कूट-कूटकर भरी रहती है। वह न तो घबराता है और न ही किसी व्यक्ति से डरता है। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता है कि उसका कार्य नैतिक नियमों/ आचरणों के विरूद्ध नहीं है। अतः वह विषम-से-विषम परिस्थिति में भी सही निर्णय दे सकता है। इसके ठीक विपरीत जो बालक नैतिकता के विरूद्ध आचरण करता है, वह हमेशा डरा-डरा, सहमा सहमा रहता है। वह अपनी एक गलती को छिपाने के लिए हजार बहाने बनाता है और गलती पर गलती करते जाता है। इसके बावजूद उसकी सच्चाई नहीं छिपती और अंततः उसे शर्मिन्दगी महसूस होती है। सामाजिक उलाहनाएँ सुनना पड़ता है, कभी-कभी उसे कठोर दंड भी भुगतना पड़ता है।
(6) सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास (Development of Right Decision Making Capacity ) - नैतिकता से बालकों में सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है— नैतिक मूल्यों एवं उच्च आदर्शों के कारण बालक का आत्मविश्वास एवं आत्मचेतना मजबूत रहती है। वह श्रेष्ठ भावनाओं से सराबोर रहता है। उसके अंतःकरण में सच्चाई का बोलबाला रहता है। अतः वह समस्या के समाधान हेतु सही समय पर, सही निर्णय ले लेता है। साथ ही वह अपने द्वारा लिये गये निर्णय पर अडिग एवं अटल रहता है। इसके ठीक विपरीत जिन बालकों में नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों का अभाव रहता है वे इसी मानसिक उलझन एवं अन्तर्द्वन्द में फँसे रहते हैं कि क्या करें, क्या नहीं करें, यदि मैंने ऐसा किया तो वैसा हो जाएगा और वैसा किया तो ऐसा हो जाएगा। फलतः वे सही निर्णय पर नहीं पहुँच पाते हैं। वह भावनाओं एवं इच्छाओं (दिल एवं दिमाग) के अन्तर्द्वन्द्वों व संघर्षों में फंसा रहता है तथा सही समय पर सही निर्णय लेने से चूक जाता है।
(7) अभिवृत्तियों के विकास में (In The Development of Attitudes ) - अभिवृत्तियों के विकास में भी नैतिक मूल्यों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। बालक की अभिवृत्तियों के विकास में भी नैतिक मूल्यों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। बालक की अभिवृत्तियाँ किस प्रकार की होंगी, इसमें नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उच्च नैतिक मूल्यों से बालक में धनात्मक अभिवृत्तियों का निर्माण होता है। अतः माता-पिता एवं शिक्षकों का परम दायित्व है कि वे बालक को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दें तथा उनमें धनात्मक अभिवृत्तियों का बीजारोपण करें और उसे पुष्पित - पल्लवित होने में उनकी मदद करें।
(8) आचरणों के निर्धारण में सहायक (Helpful in the Determination of Behaviour) - नैतिक मूल्य बालकों के आचरण व व्यवहार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बालक उन्हीं कार्यों को करने के लिए प्रेरित होता है जो सामाजिक अपेक्षाओं एवं प्रत्याशाओं के अनुरूप होते हैं। जब बालक छोटे होते हैं तो उनमें उतना अधिक बौद्धिक विकास नहीं हुआ रहता है। इस कारण वे नैतिक मूल्यों को समझ नहीं पाते हैं तथा दंड से बचने के लिए अथवा डर के कारण झूठ बोल देते हैं। परन्तु जब वे ही बालक बड़े हो जाते हैं, तब वे नैतिक मूल्यों के बारे में जान जाते हैं। नैतिक मूल्य उनके रग-रग में निवास करते हैं, इस कारण वे अनुचित, गलत एवं बुरे कार्यों को करने से डरते हैं। अब वे दंड अथवा डाँट फटकार से बचने के लिए झूठ का सहारा नहीं लेते हैं बल्कि अपनी गलती को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
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